आज पूर्णिमा है !
चलो कुछ ऐसा पढ़ें जो की आज तक इस दुनिया की किसी किताब में कभी ना
लिखा गया हो
कुछ ऐसा करें जो की पुरातन से अब तक किसी ने कभी ना किया हो
समुद्र की लहरों के साथ क्या खून नहीं लहराता होगा
मस्तिष्क की शिराओं में क्या हलचल नहीं मचाता होगा
चलो उसे महसूस करें जो सदा से पास है – भीतर रोज़ पनपता है – और मुरझा
जाता है
आज उसे हम सींचें – उस पोधे को इक वृछ बनाएँ – जो भीतर ही फल देता है
आज पूर्णिमा है ! चलो कुछ उत्पात करें !
अगस्त्य
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