Friday, December 23, 2016

Think or समझ ! By Osho

मझ की बहुत बात भी नहीं। समझने का बहुत सवाल भी नहीं। जो समझने में ही उलझा रहेगानासमझ ही बना रहेगा।
      जीवन कुछ जीने की बात हैस्वाद लेने की बात है। समझ का अर्थ ही होता है कि हम बिना स्वाद लिए समझने की चेष्टा में लगे हैंबिना जीए समझने की चेष्टा में लगे हैं। बिना भोजन किए भूख न मिटेगी। समझने से कब किसकी भूख मिटीऔर भूख मिट जाए तो समझने की चिंता कौन करता है!

      आदमी ने एक बड़ी बुनियादी भूल सीख ली है—वह हैजीवन को समझ के द्वारा भरने का। जीवन कभी समझ से भरता नहींधोखा पैदा होता है।
      प्रेम करो तो प्रेम को जानोगे। प्रार्थना करो तो प्रार्थना को जानोगे।
      अहंकार की सीढ़िया थोड़ी उतरो तो निरहंकार को जानोगे।
      डूबोमिटोतो परमात्मा का थोड़ा बोध पैदा होगा।
      लेकिन तुम कहते होपहले हम समझेंगे। तुम कहते होहम पानी में उतरेंगे नजब तक हम तैरना समझ न लें। अब तैरने को समझकर कोई पानी में उतरेगा तो कभी उतर ही न पाएगा। तैरना तो तैरकर ही समझा जाता है। इसलिए पहली बार तो बिना तैरना जाने ही पानी में उतरना जरूरी है। खतरा है। पर जो खतरा मोल लेते है वे ही समझ के मोतियों को निकाल लाते हैं। तुम बिना खतरा लिए समझने की कोशिश कर रहे हो। तुम चाहते तो सब हो कि समझ में आ जाएहाथ न जलें। तुम दूर खड़े रहोसमझ की संपदा तुम्हारे पास आ जाएतुम्हें कदम न उठाना पड़े।
      तुम शब्दों—शब्दों से अपने को भर लेना चाहते हो—वही चूक हो रही है। इसलिए तुम प्रश्न पूछने में डरते भी हो। क्योंकि प्रश्न पूछने का अर्थ ही होता है : उत्तर की खोज में जाना होगा। उत्तर कोई मुफ्त नहीं मिलते हैंमिलते होतेसभी को मिल गए होते। उत्तर ऐसे ही कहीं किताबों में बंद नहीं रखे हैं कि तुमने खोले औरपा लिए। उत्तर तो जीवन की कशमकश मेंजीवन के संघर्ष में उत्पन्न होते हैं। उत्तर कोई रेडीमेड नहीं हैं कि तुम गए और प्राप्त कर लिए। कोई दूसरा तो तुम्हें दे ही नहीं सकता—तुम्हीं खोजोगे। दूसरे से इतना ही हो जाए कि तुम्हारे भीतर यह खयाल आ जाए कि बिना खोजे न मिलेगा—तो काफी। दूसरे से इतनी प्यास पैदा हो जाए कि खोजना पड़ेगाअपने को दाव पर लगाना पड़ेगा—तो बस..।
      बुद्ध पुरुषों से प्यास मिलती है। बुद्ध पुरुषों से उत्तर नहीं मिलतेप्रश्न करने की क्षमता मिलती है। बुद्ध पुरुषों से प्रश्नों के हल नहीं होतेप्रश्नों को हल करने के लिए जीवन को दाव पर लगाने का अभियान मिलता है।
      इतना बात भर तुम्हारी समझ में आ जाए कि समझने से कुछ न होगातो समझ का काम पूरा हुआ। अन्यथा जब पूछने को सोचोगे तो कुछ पूछने जैसा खयाल में न आएगापूछने को क्या हैबुद्धि कहेगीसब ठीक है। सब ठीक से काम मत चलाना। सब ठीक भी कुछ ठीक हुआसब ठीक तो बड़े बुझे मन की दशा है। कुछ भी ठीक नहीं है। सब ठीक तो तुम कहते हो तभीजब कुछ भी ठीक नहीं होता और उसे तुम देखना भी नहीं चाहतेलीप—पोत लेते होढांक लेते हो।
      जब कोई तुमसे पूछता हैकैसे होकहते होसब ठीक है। कभी गौर कियाइस सब ठीक के नीचे कितना गैर—ठीक दबा हैऔपचारिक है। इसलिए जब तुम पूछने को उठोगेपाओगेपूछने को कुछ मालूम नहीं होतासब ठीक है। लेकिन कुछ भी ठीक नहीं है। और हजार—हजार प्रश्न तुम्हारे भीतर पल रहे हैं। स्वाभाविक है कि प्रश्न पलेप्रश्नों के बिना कौन जीवन के सागर में उतरा! स्वाभाविक है कि जिज्ञासा तुम्हारे भीतर घर बनाएजिज्ञासा की पीड़ा जन्मेजिज्ञासा तुम्हें विक्षिप्त बना दे कि जब तक तुम सत्य को पा न लोसंतोष न करो।
      फिर से तुमसे कहूं : पूछने में तुम डरते होक्योंकि चलना पड़ेगा। इसे तुम भी भलीभांति जानते हो। लेकिन तुम गजब के होशियार हो अपने को धोखा देने में! इसलिए पूछते भी नहींप्रश्न भी भीतर खड़े हैंमिटते भी नहीं। मिटेंगे कैसेकौन मिटा देगाजीवन तुम्हारा हैप्रश्न तुम्हारे हैं। उत्तर भी तुम्हारे होंगेसमाधान भी तुम्हारा होगा। कंठ तुम्हारा प्यासा हैमेरे उत्तर से क्या होगा हल! तुम्हें सरोवर खोजना पड़ेगा। ज्यादा से ज्यादा इतना कह सकता हूं इसी राह मैं भी चला थाघबड़ाना मत। कितनी ही प्यास बढ़ जाएनिराश मत होना—सरोवर है। इतनी आस्था तुम्हें दे सकता हूं।
      जो उत्तर मैं तुम्हें दे रहा हूं वे प्रश्नों के उत्तर नहीं हैंसिर्फ तुम्हारी कमजोर हिम्मत न हो जाएतुम हिम्मतपस्त न हो जाओ। राह लंबी हैसरोवर दूर हैमुफ्त नहीं मिलताबड़ा कंटकाकीर्ण मार्ग हैभटक जाने की ज्यादा संभावनाएं हैं पहुंच जाने की बजाय। करीब—करीब आ गए लोग भी भटक गए हैंपहुंचते—पहुंचते गलत राह पकड़ ली हैपहुंच ही गए थे कि पड़ाव डाल दिया। दो कदम बाद सरोवर था कि थक गए और सोचा कि मंजिल आ गईआंख बंद कर ली और सपने देखने लगे। इतना ही तुमसे कह सकता हूं कि सरोवर है और सरोवर को पाने का तुम्हारा जन्म—सिद्ध अधिकार है। पर खोजे बिना यह न होगा।
      और खोज से इतना डर क्यों लगता हैक्योंकि खोज का अर्थ ही होता है : अनजाने रास्तों पर यात्रा करनी होगी। खोज का अर्थ ही होता है : नक्शे नहीं हैं हाथ मेंनहीं तो नक्शो के सहारे चल लेतेराह पर मील के पत्थर नहीं लगे हैंनहीं तो उनके सहारे चल लेते। खोज जटिल है इसलिए कि तुम चलते होतुम्हारे चलने से ही रास्ता बनता है। रास्ता पहले से तैयार नहीं है। राजपथ नहीं है जिस पर भीड़ चली जाए।
      इसलिए तुमसे कहता हूं : धर्म वैयक्तिक है।
      संप्रदाय तुम्हें धोखा देता है राजपथ का। हिंदू चले जा रहे हैंमुसलमान चले जा रहे हैंतुम भी साथ—संग हो लिएबड़ी भीड़ जा रही है! लेकिन जो भी पहुंचा हैअकेला पहुंचा हैयाद रखनाभीड़ कभी पहुंची नहीं। जो भी पहुंचा हैनितांत एकांत में पहुंचा है। जो भी पहुंचा हैइतना अकेला पहुंचा है कि खुद भी अपने साथ न था उन पहुंचने के क्षणों में। इतनी शून्य एकांत की दशा में कोई पहुंचा है कि खुद भी न था मौजूददूसरे की तो बात और। दूसरे की तो जगह ही न थीअपने लिए भी जगह नहीं।