प्रशाद !
गाँव में इक गरीब सा मंदिर था , जन्हा गरीब गुरबे लोग अपने आपको
मानसिक तोर पर तसल्ली देने आ जाया करते थे ! चार छह घर पैसे वालों के भी थे – पर उनका
अपना – अपना अलग मंदिर था – अलग भगवान था – घर में ही , और वास्तव में उन घरों में
मंदिर इसलिए बने थे की उनकी बहूऐ – बेटियाँ कंही मंदिर जाने के नाम पर अपने - - - ही
में मूर्ती स्थापित करवा के ना आ जाएँ !
उस गरीब से मंदिर
का इक नोजवान पुजारी था , और - - - - उसकी एक खूबसूरत बीवी भी थी --- पुजारिन थी !
पुजारी शोकिया तौर पर पहलवानी करता था , सुबह शाम हनुमान की मूर्ती को चमकाता था
---- जय हनुमान ज्ञान गूंन सागर करता था , बाकी की तमाम चार छह हाँथ पैर वाली
मूर्तियों कि ज़िम्मेदारी उसकी बीवी की थी – जो की अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह समझती
थी और निभाती भी थी !
गाँव के अधिकतर पैसे वाले लोग जड़ से नास्तिक थे , और उन्हें ज़रूरत भी
क्या थी एक ही चीज़ को बार बार रटने की – पर फिर भी वो कभी कभार उस मंदिर में आ
जाया करते थे , पुजारी से मिलने ------ पुजारिन को देखने !
अऊर सब ठीक – ठाक बा ना पुजारी जी ? कऊनो प्राबलम होय तो बताया ! कहते
पुजारी से थे --- देखते पुजारिन की तरफ थे ! बाहर आकर आपस में बतियाते थे की --- का
हो – पूजारिनियाँ बहुत जोर जोर से सिवलिंग का मींज मींज के नऊहावत रही , का
च्च्क्कर बा --- ? ई पूजारिया खाली देखैंइन के पहलवान बा का ?
वो पुजारी – वो पहलवान एक दिन कूँये से पानी खिंच रहा था की ------ वो
धन्नी जिस पर रस्सी चलने वाली गडारी लगी होती है --- टूट गयी ----- पुजारी पानी
खींचता खींचता कुवें में खीच गया , अंदर पानी तक पहुचने से पहले ही पुजारी का सर
कूंवे की पक्की दिवार से टकराकर खुल गया ! जय हनुमान ज्ञान गुन सागर करने वाले का
राम नाम सत्य हो गया !
ये खबर मिलते ही की पुजारी मर गया , उस खूबसूरत ---- नोजावान पुजारिन
से प्रशाद मिलने की आस में गाँव के तमाम पैसे वाले नास्तिक --- उस के पति के निधन
पर दुख व्यक्त करने – खुशी खुशी आये !
[ मेरी डायरी में १९/०९/९३ को लिखी गयी ]
अगस्त्य
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