Monday, November 23, 2015

चन्द पत्तों ने हरा रहने की ठानी है...

चन्द पत्तों ने हरा रहने की ठानी है ,
पेड़ तो सूख रहा पर वे मनमानी हैं !
न धूप, हवा न बारिश कि मेहरबानी है,
जब सूखना ही हो तो मौसम बेमानी है,
कितनी ही ऊपजाऊ हो बंज़र ही रहेगी,
जब बीज ने ही अंकुर न होने की ठानी है,
मस्तमौला रहने दो - जंगल को काटो छाँटो मत,
माना की दूनियाँ बनावटी चीज़ों की दीवानी है !
फूल अब ख़िलते नहीं पहली सी खिलखिलाहट से,
क्या करें कुछ राजनैतिक, धार्मिक सी परेशानी है !
चन्द पत्तों ने हरा रहने की ठानी है ,
पेड़ तो सूख रहा पर वे मनमानी हैं !

स्वामी नारायण !

Wednesday, July 15, 2015

My so called name ... ?

जिसे कहतें हैं मेरा नाम पता नहीं किसका है,
कहते हैं जिसे मेरी आवाज़ पता नहीं किसकी है,
किसका है ये शरीर - हाँथ और पावँ,
ये भिखारी सी बुद्धि पता नहीं किसकी है !
किसका है ये रोआँ रोआँ - ये चलती साँस किसकी है ?

आश्चर्य ! कि मेरे ही नाम के बीच बरसों से दबा कुचला सा पड़ा है और मुझे ही दिखाई नहीं दिया , और अध्भुत कि आज अचानक ही सामने आ गया ....   नारायण नारायण नारायण !