चन्द पत्तों ने हरा रहने की ठानी है ,
पेड़ तो सूख रहा पर वे मनमानी हैं !
न धूप, हवा न बारिश कि मेहरबानी है,
जब सूखना ही हो तो मौसम बेमानी है,
कितनी ही ऊपजाऊ हो बंज़र ही रहेगी,
जब बीज ने ही अंकुर न होने की ठानी है,
मस्तमौला रहने दो - जंगल को काटो छाँटो मत,
माना की दूनियाँ बनावटी चीज़ों की दीवानी है !
फूल अब ख़िलते नहीं पहली सी खिलखिलाहट से,
क्या करें कुछ राजनैतिक, धार्मिक सी परेशानी है !
चन्द पत्तों ने हरा रहने की ठानी है ,
पेड़ तो सूख रहा पर वे मनमानी हैं !
स्वामी नारायण !
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