प्रभु को खोजन मैं गया , आपूई गया हेराय ,
कहा कहूँ उस देस की , जो जावे खो जाय ,
सबै सयाने एक मत , एकहि को बतलाय ,
बहूतेरे हैं घाट पर , सबै समुन्द मां जाय ,
बलिहारी प्रभु आपकी जो गुरु से दियो मिलाय,
और बलिहारी गूरू आपकी जो प्रभु मार्ग बतलाय,
क्रोध लोभ और मोह मद सबै मोहें भरमाय,
कबिरा खड़ा बजार में बकत आंय और बांय,
शहरों की पॉश कालोनियों में नेवले रहते हैं साँप भी , हम भी रहते हैं ज़नाब - और रहते हैं आप भी ,
कहते हैं लोग काम क्रोध लोभ मद छोड़ देना चाहिए ,
छोड़ने और छूट जाने में फर्क़ करिये आप ही ,
समय चक्र की तरह हूँ बर्फ को देखकर सोचता ,
कि पिघलकर पानी बनेगा फिर बनेगा भाप भी ,
क्या मैं जानता हूँ की मैं कुछ नहीं जानता ?
इस चलती हुई सांस लेने की जानकारी को भी नहीं नहीं जान पाता हूँ , मैं क्या कौन कैसे हुआ या हूँ कब तक इसी प्रकार मरने जीने जैसी रिसाइकिल वाली स्थिति से गुज़रता रहूँगा , उपनिषद कहते हैं कि तत्त्वमसि - सुनता हूँ पर जान नहीं पाता !
अनूभवी अज्ञानी !
कहा कहूँ उस देस की , जो जावे खो जाय ,
सबै सयाने एक मत , एकहि को बतलाय ,
बहूतेरे हैं घाट पर , सबै समुन्द मां जाय ,
बलिहारी प्रभु आपकी जो गुरु से दियो मिलाय,
और बलिहारी गूरू आपकी जो प्रभु मार्ग बतलाय,
क्रोध लोभ और मोह मद सबै मोहें भरमाय,
कबिरा खड़ा बजार में बकत आंय और बांय,
शहरों की पॉश कालोनियों में नेवले रहते हैं साँप भी , हम भी रहते हैं ज़नाब - और रहते हैं आप भी ,
कहते हैं लोग काम क्रोध लोभ मद छोड़ देना चाहिए ,
छोड़ने और छूट जाने में फर्क़ करिये आप ही ,
समय चक्र की तरह हूँ बर्फ को देखकर सोचता ,
कि पिघलकर पानी बनेगा फिर बनेगा भाप भी ,
क्या मैं जानता हूँ की मैं कुछ नहीं जानता ?
इस चलती हुई सांस लेने की जानकारी को भी नहीं नहीं जान पाता हूँ , मैं क्या कौन कैसे हुआ या हूँ कब तक इसी प्रकार मरने जीने जैसी रिसाइकिल वाली स्थिति से गुज़रता रहूँगा , उपनिषद कहते हैं कि तत्त्वमसि - सुनता हूँ पर जान नहीं पाता !
अनूभवी अज्ञानी !
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