जिसे कहतें हैं मेरा नाम पता नहीं किसका है,
कहते हैं जिसे मेरी आवाज़ पता नहीं किसकी है,
किसका है ये शरीर - हाँथ और पावँ,
ये भिखारी सी बुद्धि पता नहीं किसकी है !
किसका है ये रोआँ रोआँ - ये चलती साँस किसकी है ?
आश्चर्य ! कि मेरे ही नाम के बीच बरसों से दबा कुचला सा पड़ा है और मुझे ही दिखाई नहीं दिया , और अध्भुत कि आज अचानक ही सामने आ गया .... नारायण नारायण नारायण !
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