इक हवा ताज़ी है छू गयी चुपके चुपके,
इक और पात झरा आहिस्ते आहिस्ते,
कब तक ले घूमेंगे सहश सम्बन्धों का शव,
गल गल गिर जाने दें कुछ बोझिल टूटे रिश्ते,
क्या अजब कुछ दिल टूटे इस हयाते फानी में,
हम ना थे आसमां के कुछ वो न् थे फ़रिश्ते,
चुभे हैं खार जब भी महके हैं यादों के गुलाब,
ज़ख्म नासूर हूए हैं कुछ यूं रिसते रिसते,
कयूऊं करें जख्मो का शिकवा और चोटों का गिला,
कुछ संगे दिल शालिग्राम हुएँ हैं यूं घिसते
घिसते,
इक हवा ताज़ी है छू गयी चुपके चुपके,
इक और पात झरा आहिस्ते आहिस्ते,
सोजन्य : भगवान श्री ओशो रजनीश
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