इंसान अपनी ही बनायी कहावत की तरह संसार का
जला हूआ परमात्मा को भी फूंक फूंक कर पीने की कोशिश करता है !
अनूभवी अज्ञानी
सच कहबे कंहा रहबे साहेब,
ज्हूठन् पूछिहें का कहबे साहेब,
ई दुनिया सब बेईमानन की,
कंहा जीबे – कैएसे सह्बे साहबे,
मोर भिखारी अरज करत है ,
भिछापात्र केसे भरबे साहेब ,
चेंन पड़ी जब तुम मिल जैईहो साहेब,
साहेब मिल हम साहेब बन जैईहों साहेब !
अगस्त्य
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