शहज़दियाँ कई हमको पहन के रहती हैं,
कान्हा हूँ मीरा अक्सर ज़हन में रहती है !
मैं भूल जाऊं जिसको वो बेचेन हो जाता है
मै याद करलूं जिसको वो मगन सी रहती है
कहते ही हैं की ग़ालिब का है अंदाज़े बयां कुछ
और
हम भी गुनगूनाएं तो खुशबू चमन में रहती है
ईश्वर या अल्लाह का गुनाहगार नहीं हूँ
वो तो बस यूं ही कुछ मज़ाक में अनबन से रहती
है !
अगस्त्य
No comments:
Post a Comment