सूर्य के प्रकाश में तू है खड़ा निराश कयूऊं ,
दूसरों की आस में तू है खड़ा हताश कयूऊं ,
लोग तो कुछ भी कहेंगे तोड़ता विस्वास कयूऊं ,
चल वीर भोग्यम वसुन्धरा को सिद्ध कर के दिखला
दे ,
खाली हाथों से ऊसर बंज़र को हरा कर के दिखला
दे ,
दिखला दे की अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है ,
अपनी पे आ जाये तो तिनका भी नदिया की धार मोड़
सकता है ,
खोद सकता है तू जमीं को नाखूनों से पाताल तक
,
तीसरा नेत्र खोल देख सूछ्म से विशाल तक ,
हरीभरी दूब की जगह गुलाब काम नहीं आता ,
बच्चे भूखे हों तो शबाब काम नहीं आता ,
अपने भीतर झाँक बाहर करता तलाश कयूऊं ,
सूर्य के प्रकाश में तू है खड़ा निराश कयूऊं !
अगस्त्य नारायण शुक्ल
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