Monday, May 13, 2013

सूर्य के प्रकाश में ...


सूर्य के प्रकाश में तू है खड़ा निराश कयूऊं ,

दूसरों की आस में तू है खड़ा हताश कयूऊं ,

लोग तो कुछ भी कहेंगे तोड़ता विस्वास कयूऊं ,

चल वीर भोग्यम वसुन्धरा को सिद्ध कर के दिखला दे ,

खाली हाथों से ऊसर बंज़र को हरा कर के दिखला दे ,

दिखला दे की अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है ,

अपनी पे आ जाये तो तिनका भी नदिया की धार मोड़ सकता है ,

खोद सकता है तू जमीं को नाखूनों से पाताल तक ,

तीसरा नेत्र खोल देख सूछ्म से विशाल तक ,

हरीभरी दूब की जगह गुलाब काम नहीं आता ,

बच्चे भूखे हों तो शबाब काम नहीं आता ,

अपने भीतर झाँक बाहर करता तलाश कयूऊं ,

सूर्य के प्रकाश में तू है खड़ा निराश कयूऊं !

 

अगस्त्य नारायण शुक्ल
  

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