कैसे कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
लोग गाते गाते चिल्लाने लगे हैं,
वो सलीबों के क़रीब आये तो,
हमको क़ायदा समझाने लगे हैं,
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
कमल के फूल भी मुरझाने लगे हैं,
अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र हम,
आदमी को आदमी भूनकर ख़ाने लगे हैं,
कैसे कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
लोग गाते गाते चिल्लाने लगे हैं,
अनुभवि अज्ञानी
No comments:
Post a Comment